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मंगलवार, 18 जुलाई 2023
पास ही
खुद को ढूंढता हुआ मैं
खुद से बाहर निकलता हूँ
स्वयं में जब मैं होता हूँ
स्वयं का नही रहता
बहुत सी आवाजों में दबकर
स्वयं को बाहर निकालता हूँ
न मैं अन्दर रह पाता हूँ
और न ही बाहर
ये जो पास में बैठा शख्स है न
वो मैं ही बना बैठा हूँ
अपने करीब में ।
गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022
क्षरण
उसने कहा कि
खत्म हो जाना चाहिए तुम्हें अब तक
मैंने बोला
हो तो रहा हूँ मैं धीरे धीरे,
खाली हो रहा हूँ अन्दर से,
बस मन ही भर गया हैं।
बुधवार, 24 सितंबर 2014
जीवन
फूल खिलते है
महकते है
चमन को रंगीन
व मोहक बनाते है
खूशबू से नहा उठती है
आती जाती हवा वही
चित्त को बेपरवाह बना देती है
रंग बिरंगी पंखुड़ियाँ
भीनी भीनी सी खुशबू
ये हवाएँ ,ये फिज़ा
पर उसके बाद
उनका टूट कर बिखरना
जरुरी है क्या?
क्षणिक
कही कोई गीत नहीं था
न ही कोई बात
भावों की भाषा नहीं थी
न ही जज्बातों की कही भनक
पर ये समय के आगोश में
एक कोना ऐसा मिला
उपस्थिति अपने वजूद को
बार बार वही ले गया
कल्पना कही उम्र पा गयी
अनुभव वही क्षणभंगुर हो गया
जीवन तो चलता रहा
कदम बार बार रुकते रहे
जो क्षणिक था ,वह उम्र तो नही बना
पर ये उम्र हमेशा क्षणिक ही लगा
रविवार, 5 जनवरी 2014
बूँद भी करती है सफर दूर तनहा ही
कभी तो तुम भी रहो ,खुद ही तनहा ही
जान लोगे क्या होती है ,शान इस तनहाई का
एक समुद्र फैल जाता है ,दूर तक तनहा ही
बुधवार, 17 अगस्त 2011
किस
लोकत्रंत
की
बात
हो
रही
है
.
ऐसे
ही
भीड़
को
लेकर
चुनाव
करते
है
,
कुछ
वोटो
से
आगे
होकर
संसद
में
बैठते
है
.
उन्हें
खुद
ही
नहीं
याद
रहता
है
कि
चुनावी
घोषणापत्र
क्या
था
.
सिस्टम
खुद
ही
बनाते
है
,
उसमे
हो
रही
कमी
को
कैसे
वो
नकार
सकते
है
.
अब
क्या
भष्ट्राचार
की
परिभाषा
की
जरुरत
है
.
विश्व
की
महाश्क्तिवो
को
वीटो
का
अधिकार
छोड़ने
को
कहा
जाये
तो
वो
कभी
सहमत
होगी
.
इसी
प्रस्ताव
पर
वो
वीटो
का
उपयोग
करेगी
.
निसंदेह
संसद
बड़ा
है
तभी
तो
जनता
चाहती
है
जनलोक
पाल
बिल
संसद
पटल
पर
आये
न
की
राष्ट्रपति
अध्यादेश
जारी
करे
.
बुधवार, 13 जुलाई 2011
ख़ामोशी
तुम चुप हो
चुप्पी में भी एक ख़ामोशी
निरीह व हताश
लगभग मरी हुई सी
चुपचाप देखती हुई
कि बहुत लोग चीखते चीखते
अंत में शांत हो गए
हाँ ,हार गए
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