सुन समय
मुझसे एक ख्याल
एक सोच जो सच है
सच है और गुमराह भी
आसपास का आबोहवा भी
रिक्तियों के उमस में
अपने वजूद से बेपरवाह भी
न निकटता थी
न शिकायत
न जज्बात और न
पैरो के निशान
फिर भी अहसास था
वक्त है मेरे करीब
अपनी खुशबू ,अपनी छुअन
अपने सभी पहलुओ के साथ
बुने हुए ख्वाब
और
चल रहे हकीकत के संग
जैसे बूंद बूंद जल को
अजुल में भर
पूरा पी लिया हो एक साथ
तृप्ति के लिए
मेरे करीब है पड़ा ,अलसाया सा
अपनी अलबेली चाल में
मेरा बहुत कुछ समेटे
अस्त व्यस्त
मेरी तरफ देखो ,वक्त
आओ तुम्हे सँवार दूँ