apna sach

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

समय

सुन समय
मुझसे एक ख्याल
एक सोच जो सच है
सच है और गुमराह भी
आसपास का आबोहवा भी
रिक्तियों के उमस में
अपने वजूद से बेपरवाह भी
न निकटता थी
न शिकायत
न जज्बात और न
पैरो के निशान
फिर भी अहसास था
वक्त है मेरे करीब
अपनी खुशबू ,अपनी छुअन
अपने सभी पहलुओ के साथ
बुने हुए ख्वाब
और
चल रहे हकीकत के संग
जैसे बूंद बूंद जल को
अजुल में भर
पूरा पी लिया हो एक साथ
तृप्ति के लिए
मेरे करीब है पड़ा ,अलसाया सा
अपनी अलबेली चाल में
मेरा बहुत कुछ समेटे
अस्त व्यस्त
मेरी तरफ देखो ,वक्त
आओ तुम्हे सँवार दूँ