apna sach

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

विरोध-(२)

व्यवस्थाओ के शिकंजे से जकड़ा ,
इस बंधन को तोड़ने को आतुर ,
पल-पल विकराल होती समस्याओ
से घिरा मन ,
व्यवस्था को तोड़ने के लिए ,
निकलता है घर से,
पाता है बाहर भीड़ ,
बह जाता है उसी में ,
बन जाता है रैली ,
उसकी सारी कुंठाए ,
विरोध ,शक्ति आ जाती है ,
एक झंडे व् बैनर तले ।