apna sach

शनिवार, 30 जनवरी 2010

मंचन

कही तो कुछ शेष है ,
हलकी ,धीमी व् शिथिल मंद -मंद
दबी पड़ी कही
अन्दर तक,
कुछ नहीं फिर भी बहुत कुछ शेष है ,

मन में दबी पड़ी ,बचपन की कल्पनाए ,
युवाकाल की प्रतिशोध की भावनाए ,
वर्त्तमान से अजेय रहने की
इच्छाए शेष है ,

शेष है अभी पूर्णता की परिभाषा,

रिश्तो के इमारत में दरार ,
राहों की रहस्यमयी भटकाव ,
अभी हार के बीच में
जीत की संभावनाए शेष है ,

मस्तिष्क के शिराओ का कसाव ,
चेहरे की फीकी मुस्कान ,
शेष है अभी आखों (मौन ) की भाषा ,
जीवन का मंचन शेष है
शेष का अवशेष में परिवर्तन
पूर्ण नहीं तो
अधिअंशत: शेष है ।

बहस

कई दिन से
बहस सिर्फ बहस
इस बात का
की सामने वाला
क्यों नहीं है मेरी
बात से सहमत

रविवार, 24 जनवरी 2010

जीवट

सारी दुनिया परेशान है ,
परेशान है जीने में ,मरने में ,
मरना उसे आता नहीं ,
और जीना उसे भाता नहीं
करते है जीने में ही मरने की कल्पना ,
और टोहते रहते है कब्र की दीवार ,
जिंदगी में भावनाओ में ,
यह सच है ,
जीने में कई बार मौत आती है ,
लेकिन मौत के बाद
जीवन ,
एक कही सुनी बात है ।