apna sach

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

स्वप्न

चलते -चलते ही हमारे अनुभव ही
हमारी जिंदगी बनते है
हमारे अहसास व आशाओं के बीच ही
स्वप्न पलते है
कुछ कड़वी यादें साथ ही रहती है
कुछ अजीब अनुभव हमारे बीच पलती है
स्वप्नों के बीच वास्तविकता
व वास्तविकता में स्वप्न का उदभव
न हम तोड़ पाते है और न ही छोड़ पाते है

दांपत्य

याद है वे बातें जो
पगडंडी से होती हुयी
सड़क
सड़क से होती हुयी
शहर
शहर से होती हुयी
ताजमहल तक पहुची थी
ताजमहल अच्छा था
अत: बातें भी अच्छी रही
सुना था चांदनी में ताजमहल
खुबसूरत लगता है
हम लोगो की बाते भी
इंतजार में रही
चांदनी की
चांदनी झिलमिल ,स्वप्नलोक का
अहसास करती जब
बिझी धरती पर
हमारे कदमो से लेकर दूर अम्बर तक
तब हमारी बाते भी ठहर गयी थी
मुस्कराती हुयी खामोश थी
खामोश थी तब भी बातें
जब हम लौट रहे थे
अपने घर के चूल्हे के पास
आग के किनारे
तुष्टि के समीप
उसके बाद
बातें हमारे इर्द गिर्द ही रही
चूल्हे के पास से होती हुयी
द्वार पर आये हुए
हर शख्स से बात करती हुयी

यादें

रुकती हुई
एक संवेदना
एक भाव
अब गिरती ,तब गिरती
डाल से अलग होती हुयी

एक पत्ती की तरह
सुने वियावन जंगल में
आखिर बिछ गयी धरती पर
धूप होगी
हवा बहेगी
वह आवाज करेगी
तब तक रहेगी संगीतमय
जब तक वह भीग न जाये
अंतत:
खामोश ,किन्ही तहों में दबी
आखिरकार संवेदनाशून्य हो ही जायेगी


सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

उजाले

रात की अनछुई सायों में
सब कुछ खोया खोया था
जब सुबह चौक कर जागा तो
थे तुम बदले थे हम बदले

परिवर्तन

रोज की तरह
जैसे खाना ,पहनना
रोज की तरह
सोना ,जागना
रोज की तरह
दिन गुजारना ,
इन्ही रोज में
सिमटती उम्र
बढ़ते अनुभव ,
झड़ते बाल ,मुरझते जिस्म ,
रोज में बदल जाता है
सबका विचार ,
कल, आज में अंतर ,
चौबीस घंटे का अंतर ,
वो भी व्यतीत होते है
रोज की तरह

माँ

वह जैसे घुप अँधेरे में
ढूढ़ लेती है दरवाजे ,
खिड़कियो के परदे हटा
कुछ रोशनी को ढूढ़ती है ,
अँधेरे को टटोलती ,
अँधेरे में चलती ,
अँधेरे में ही मिल जाते है उसे
माचिस दिए ,
खुद को एकाग्र कर
जगाती है जैसे दीये कि लौ ,
संयत और फिर सजग
समेटती है सबको अपने आँचल में ,
अपने मीठी बातो में ,
सुकून भरे पलों को
जैसे ले आती है वो अधेरो में भी ,
हम वैसे क्यों नहीं कर पाते
उजालो में भी

जिंदगी

जिंदगी हमेशा जीती हुई
नहीं
होती ,
दर्द में हमेशा उदास
सी नहीं होती ,
कभी लड़खड़ाती है तो
भुजाए सहारे का प्रयास
करती है ,
कभी थककर ,कभी यूँ ही
आराम करती है ,
कभी उम्र ,कभी वक्त
कभी मिजाज का नाम लेकर
जिंदगी यूँ ही कई रंग
बिखेर जाती है