apna sach

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

जीवन से विपरीत

मौत आयी तो
वजहें सामने आने लगी
कैसे कैसे व कब ,क्यों हुए
दुर्घटना से
हत्या से
आत्महत्या से
बीमारी से
बलात्कार से
मार से


मौत आयी तो
आंकड़े बोलने लगे
कहा कहा
कितने कितने गए
सुनामी में
भूकंप में
तूफान में
बाढ़ में
युद्ध में

मौत आयी तो
सरहदे बोलने लगी
कौन कौन
कहाँ कहाँ से थे
विदेश से
देश से
प्रदेश से

मौत का कोई रंग नहीं होता
कोई रूप नहीं होता
कोई भेद नहीं होता
कोई पता नहीं होता
बस कहे तो
जिन्दगी ही चली जाती है
यूँ ही ,सब छोड़कर

रविवार, 4 अप्रैल 2010

संतुष्टि

थोड़े से शब्द
थोड़े से अर्थ
थोड़े से संवाद
थोडा सा विश्वाश
यत्र -तत्र बिखरे हुए
जब तब उन्हें लेते हम
यदा कदा ही संभाल पाते है
उन्हें हम
और
यदा कदा ही मिल पाती है
संतुष्टि
थोड़ी सी

पक्षियो के शोर में -गौरैया



(२० मार्च २०१० को गौरैया दिवस मनाया गया । यह समाचार फुदक कर हमारे सामने आया कि उनकी संख्या कम होती जा रही है । )

नन्ही सी ,फुदकती हुई
यहाँ वहा दानो को जुगती
बचपन से ही जिन्हें हम
अपने आस पास पाते है
जिनकी आवाजो से
कभी हम खीझ भी जाते
आनायास ही कही से
चली आती थी वो
वरामदे में ,कही खाट पर
कभी कभी आईने में
खुद को ही चोंच मारती
उनकी मौजूदगी हमें सहज लगती
वैसे नहीं जैसे नीलकंठ को
देखते ही हम सजग हो जाते
साथ साथ रहते ,अहसास तक नहीं हुआ कि
वो नहीं दिखती ,अब हमेशा ही
यदा कदा दिखते रहने पर
हमें ज्ञात ही नहीं हुआ कि
वो दूर होती जा रही है हमसे
और हमलोग प्रगति की ओर अग्रसर
अपने अतीत से बेपरवाह
अपने घर से
अपनो से
दूर होते जा रहे है
उन्हें नकारते हुए
गौरैया गवाह है इसकी ।