apna sach

बुधवार, 24 सितंबर 2014

                         जीवन  

फूल खिलते है 
महकते है 
चमन को रंगीन 
व मोहक बनाते है 
खूशबू से नहा उठती है
आती  जाती हवा वही 
चित्त को बेपरवाह बना देती है
रंग बिरंगी पंखुड़ियाँ 
भीनी भीनी सी खुशबू 
ये हवाएँ ,ये फिज़ा 

पर उसके बाद 
उनका टूट कर बिखरना 
                   जरुरी है क्या?

क्षणिक 


कही कोई गीत नहीं था 
न ही कोई बात 
भावों  की भाषा नहीं थी 
न ही जज्बातों की कही भनक
 
पर ये समय के आगोश में 
एक कोना ऐसा मिला 
उपस्थिति अपने वजूद को 
बार बार वही ले गया 

कल्पना कही उम्र पा गयी 
अनुभव वही  क्षणभंगुर हो गया 
जीवन तो चलता रहा 
कदम बार बार रुकते रहे 

जो क्षणिक  था  ,वह उम्र तो नही बना 
पर ये उम्र हमेशा क्षणिक ही लगा