apna sach

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

स्त्री

तुम खुश हो ?
अरे हाँ ,तुम खुश क्यों नहीं होगी
आईने में तुमने खुद को
आज जी भर निहारा है
रक्षा बंधन पर भाई ने
तुम्हे बहुत याद किया है
पति ने नयी साड़ी
तुम्हे लाकर दी है
त्यौहार पर तुमने
घर को खूब संवार दी है
बेटे को मेडिकल में
दाखिला मिल गया है
बेटी अपने ससुराल में
बहुत खुश है
बहू ने तुम्हे एक बेटी की
तरह प्यार दिया है

तुमने
घर के एक एक कोने को
हर एक व्यक्ति को
अपने जिंदगी का
हर एक पल समर्पित किये

तुम खुश क्यों नहीं होगी

तुमने अपने दुःख को
अपने सुख को
अपने पुराने बक्से में डालती गयी
जिसमे काफी कुछ तुम्हारा कभी
और अभी भी
बहुत निजी है

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

अंत अभी नहीं

(कभी कभी हमलोग परिस्थितियों से लड़ने के बजाय खुद को उसके हवाले कर देते है। अपना अंत ,
अपने विचार व अपने व्यक्तित्व का अंत
तक
सोचने लगते है
पर कहते है -
जहाँ कुछ भी हो
वहां
दो शब्द हमेशा
हमारे साथ रहते है)


इस असहनीय दर्द में

मै अपना अंत क्यों सोचूँ

जरा जी कर देखे

इस दर्द का अंत है कहाँ





बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

विद्रोह -

शब्द ,शब्द ही रहे
भावनाए बदल गयी
शब्द बेजान हुए
अर्थ सब खो गए
अपने अन्दर इतना विद्रोह भरा है
यह चोट करने पर मालूम हुआ ।

कुछ रूमानी है

तुम्हारे बहुत पास
गुजर कर देखा
तुम्हारी उस झुकती
नजर को देखा
तुम्हारी बोलती खामोश
जुबां को देखा
नजरे मिली तो
नजर हटा के देखा
दिखा तो सब कुछ
मगर सब 'तुम्हारे ' सिवा

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

हाँ उस टूटती हुई शाखा
की ही बात है
जो कल तक हवा के झोको
से आनंदित होती थी
आज उन्ही से
अपने टूटन में
हो रही बढ़त से
नाराज भी है
व हताश भी ।

कुछ रूमानी है

मुझे याद है वो पल
वो तेरी नजर
वो अजीब कहर
वो ओठ तेरे
एक अल्फाज लहर
मुझे याद नहीं
वो क्या कहे
मुझे बस दिखा
एक कमजोर पल
मैंने महसूस की
यह सत्य भी
तुने मुझ पर भी
कुछ गौर की
तेरे हावभाव कुछ
कहे नहीं
मुझे भा गया
तेरी ये पहल .........

धर्म

गुम्बद की तरह ऊची एक आवाज

दूर तक गूंज गयी

सभी ने सुना

धीरे धीरे आवाजधीमे धीमे ही सही

गीले उपले में लगी आग की तरह

धुएं की शक्ल में

दूर तक छा गयी

धुंध में कुछ स्पष्ट दिखना था

फिर भी लोग उस आवाज के

विषय में बात करते

अपनी आवाज को ही उस आवाज

का नाम देते

कुछ को अपने कानो पर विश्वास

कुछ को अपनी जबान पर

आश्चर्य सब अलग होते

वो आवाज क्या कह गयी

आज भी एक रहस्य है

पर वह आवाज गूंजी थी

ये सभी कहतें हैं

अब भी लोग उन आवाजों को

गौर से सुनते है

जो ऊची होती है

जो विस्तृत फैलती है

और शायद भ्रमित होते है कि

उन्होंने उस आवाज को सुन लिया

जो कभी गूंजा था और

आज भी धुंध में है

वे इसे धर्म की संज्ञा देते है