apna sach

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

कब तक

राजनीति जब तुम्हारे बातो
में होती है तो
श्रेष्ठ रहती है
राजनीति जब तुम्हारे कर्मो
में जाती है तो
भ्रष्ट हो जाती है
बातो के पुलिंदे में जब तब
करवट बदलते अर्थ
कभी बैशाखी बन जाते है
तो कभी अस्त्र

तुम जब दल बदलते हो
तो राजनीति नए अध्याय
में जाती है
तुम नहीं बदलते
तुम्हारी सोच नहीं बदलती
बस बदलते है
तुम्हारे अस्त्र व तुम्हारे ढाल

तुम सरकार बनाते हो
तुम सरकार चलाते हो
राजनीति ko हांक कर
संसद में बिठाते हो
तुम वहा उठते बैठते
मजाक करते
कभी हल्ला मचाते
कभी अभद्र होते हो
और हम कही उसका
भुगतान करते तो
राजनीति वही शर्मसार हो
जाती है

सोमवार, 8 मार्च 2010

नारी

तुम ,तुम हो
एक सहृदय
अकल्पित
व एक खुबसूरत परिकल्पना
ह्रदय की वाणी
एक अछूता अहसास
एक गंभीर ज्योत्सना

तुम ,तुम हो
एक सजीवता
सत्य व
ज्ञान के समीप
एक लय ,एक लक्ष्य
व एक मार्ग के करीब


तुम ,तुम हो
एक सशक्त पहचान
विश्वास की प्रतिक
अटल ,अविचलित
एक मजबूत अस्तित्व
तुम ,तुम हो