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सोमवार, 11 जनवरी 2010
अवलोकन
दोनों
हमउम्र
एक ही माहौल में पले-बड़े
लगभग एक ही सी
उनकी दिनचर्या
कुछ बातों को छोड़ कर
एक दूसरे से सहमत
एक रात वें कर रहे थे
अपने
sukh dukh का विश्लेषण
एक ने इसे जीवन कहा ,दूसरे ने इसे प्रपंच .
हकीकत
जिन्दगी में मैंने कुछ भी
बिगाड़ना नहीं चाहा
लेकिन जो बिगड़ गया
उसे संवारने की इच्छा भी नहीं हुई ,
ये मेरा भम्र है या
मेरी पैनी दृष्टि
मुझे बिगड़ा रूप ही
ज्यादा वास्तविक लगा .
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