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रविवार, 4 अप्रैल 2010

पक्षियो के शोर में -गौरैया



(२० मार्च २०१० को गौरैया दिवस मनाया गया । यह समाचार फुदक कर हमारे सामने आया कि उनकी संख्या कम होती जा रही है । )

नन्ही सी ,फुदकती हुई
यहाँ वहा दानो को जुगती
बचपन से ही जिन्हें हम
अपने आस पास पाते है
जिनकी आवाजो से
कभी हम खीझ भी जाते
आनायास ही कही से
चली आती थी वो
वरामदे में ,कही खाट पर
कभी कभी आईने में
खुद को ही चोंच मारती
उनकी मौजूदगी हमें सहज लगती
वैसे नहीं जैसे नीलकंठ को
देखते ही हम सजग हो जाते
साथ साथ रहते ,अहसास तक नहीं हुआ कि
वो नहीं दिखती ,अब हमेशा ही
यदा कदा दिखते रहने पर
हमें ज्ञात ही नहीं हुआ कि
वो दूर होती जा रही है हमसे
और हमलोग प्रगति की ओर अग्रसर
अपने अतीत से बेपरवाह
अपने घर से
अपनो से
दूर होते जा रहे है
उन्हें नकारते हुए
गौरैया गवाह है इसकी ।

1 टिप्पणी:

आलोक साहिल ने कहा…

बहुत ही दुखद विषय...सुंदर चिंतन

आलोक साहिल