apna sach

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

जीवन से विपरीत

मौत आयी तो
वजहें सामने आने लगी
कैसे कैसे व कब ,क्यों हुए
दुर्घटना से
हत्या से
आत्महत्या से
बीमारी से
बलात्कार से
मार से


मौत आयी तो
आंकड़े बोलने लगे
कहा कहा
कितने कितने गए
सुनामी में
भूकंप में
तूफान में
बाढ़ में
युद्ध में

मौत आयी तो
सरहदे बोलने लगी
कौन कौन
कहाँ कहाँ से थे
विदेश से
देश से
प्रदेश से

मौत का कोई रंग नहीं होता
कोई रूप नहीं होता
कोई भेद नहीं होता
कोई पता नहीं होता
बस कहे तो
जिन्दगी ही चली जाती है
यूँ ही ,सब छोड़कर

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

कोई पता नहीं होता
बस कहे तो
जिन्दगी ही चली जाती है
यूँ ही ,सब छोड़कर


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....