क्षणिक
न ही कोई बात
भावों की भाषा नहीं थी
न ही जज्बातों की कही भनक
पर ये समय के आगोश में
एक कोना ऐसा मिला
उपस्थिति अपने वजूद को
बार बार वही ले गया
कल्पना कही उम्र पा गयी
अनुभव वही क्षणभंगुर हो गया
जीवन तो चलता रहा
कदम बार बार रुकते रहे
जो क्षणिक था ,वह उम्र तो नही बना
पर ये उम्र हमेशा क्षणिक ही लगा
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