apna sach

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

आत्मसात



ये काले स्याह बादल
अब बरसते ,तब बरसते
आसमानी छत को झुकाते हुए
हमें प्रकृति से
इस कदर जोड़ जाते है
कि
हम अन्दर तक कही रिक्त
हो जाते है
और विस्मित मन
कल्पनाओ में
बहुत दूर तक फैल जाता है
असीमित व
अद्वितीय बूंदों के साथ ।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर