apna sach

बुधवार, 3 सितंबर 2025

सहारा

फैल  जाती है पेड़ो की बाँहे 

   अपने आसपास 

किसी को सहारा मिल जाता है 

         तो  कहीं छाँव 

इस सहारे की एक कीमत  

   यह भी है 

अपने जैसो को ये 

पनपने ही नहीं देती। 

अस्वाद

कसैलापन आँवले का ,

नीम का ,

हँसी का,

जिंदगी का ,

स्वाद लिए रहती तो है अस्वाद का ,

जरुरी भी हो जाती है स्वास्थ्य के लिए,

मधुरता भी  जहर हो जाती है

            कभी कभी। 

मंगलवार, 2 सितंबर 2025

वेन आरेख

हमारे बीच की ये

 वेन  आरेख ,

मेरा  पूरा हो सकता है ,

 तुम्हारा भी पूरा हो सकता है,

 हम तुम कुछ न कुछ साझा भी कर सकते है,

 हम कुछ भी  साझा नहीं कर सकते  है,

 जिन्दगी के गणित में,

 संभावनाओं का अस्तित्व

 हमेशा ही रहा है। 

पुर्नावृति

इसी धरती पर
सदियों से पड़ रहे है 
कदमों के निशान ,
बहुत सारे पैरो ने बनाये होंगे 
एक निशान रास्तो का,
मिटा होगा,
 पुनः बना होगा 
हम आज भी कभी  कभी 
उन्ही कदमो के निशाँ के ऊपर ही 
अपने कदम रख रहे होंगे ,

बस वक्त के फासले ही है 

अभी सभी को चलना होगा 
समय के एक  अन्तराल में 
मिटते व बनते हुए निशानों पर 
बार बार व 
बारम्बार।

लकड़ी का कोयला

धरती ने मिटटी व् पत्थरो के अलावा 

जो कुछ बचा था शेष ,

धीरे धीरे अपने में समेटते हुए 

वर्षो बाद उन्हें कोयले में बदल दिया,

 

वही मनुष्यो ने पेड़ काटे ,मकान  बनाये 

जब जरुरत हुआ ,सुखी लकड़ियों को जला 

आग तापी ,

फसल काटने के बाद ढूढ हुई ,

तनो व् जड़ो में आग लगा दिए ,

पल भर में घर फूकं दिए 

अपना नहीं किसी और का ,

कभी ये आग से खेले 

तो कभी आग इनके साथ खेल गया ,


हम लोगो ने बचपन में,

खेलने के लिए इन लकड़ी के कोयले से

 धरती  पर कई लाइनें खींच दी।  


सोमवार, 1 सितंबर 2025

याद

 एक याद है 

     जो वर्तमान में 

        भविष्य के सपने देखती है ,

एक तुम हो 

        जो भविष्य में 

          वर्तमान को याद  करना चाहोगे ,

एक मैं  हूँ

   जो  भविष्य के सपने  को 

     वर्तमान में एक याद की तरह गढ़ रहा हूँ।  

खालीपन

खाली होना   क्या होता है 
कि विचारो का न होना 

आप सोचना चाहते हो
 और आप कुछ सोच नहीं पाते 

जो आपके मन में आ रहा होता है 
वो आपका नहीं होता 

आप गहराई में सोचते हो 
मिलता है 
बस खालीपन 
जिसे आप बस भरना चाहते हो  

जीवन और हम

कभी चेहरे की मुस्कराहट के पीछे 

छिप जाते है हम ग़मों के साथ ,

और कभी 

जीवन के उलझते क्षणों में 

हसीं ही उबार लेती है हमें ,

जीवन में सुख दुःख तो आते रहते है ,

एक हमें ही ठहरना है 

एक वजूद के साथ। 

रंग

आसमान नीला नही है ,
     
             न ही समुद्र ,

सपने रंग बिरंगें नहीं होते ,

       न ही जिंदगी बदरंग।

डर

   भितर ही डर जाते  है 

             हम कहीं 

पैर  कहीं भी चल देते है 

             बस ठहरते नही है 

उस जगह व उस पल में ,


मन बार बार पलायन 

             करता है ,

खुद से व खुद में ही ,

आँखे शून्य में चली जाती है 

व विचार जड़वत। 

छत

   छत आसमान से बात करने 

                     की  जगह,

पेड़ो की ऊंचाई तक जाकर 

उनसे बात करने की जगह ,

मन को बादलों पर रख  कर 

साथ दूर तक विचरण करते रहना ,

             व

पक्षियों को उड़ते और डाल पर 

      बैठते देखते रहना 

सीमाएं सबकी अपनी है 


उड़े चाहे जितनी 

   पर 

आना यही है.

  


 

वक्त

वक्त फूलों की सुगंध की तरह है 

आसपास बस बिखर जाती है 


आप चाहे तो उसे अंदर तक 

 समाहित करे ,

आनन्दित हो ,

स्वयं को उस पल में जोड़ दे 

          या 

बस वहाँ से गुजर जाएं 


रविवार, 31 अगस्त 2025

संकेत

उसकी उपस्थिति ही ,
   उसकी अभिव्यक्ति थी 
बोलना ,
   उसकी  मौजूदगी की आहट
लिखना ,
    उसके होने की मान्यता 

स्वीकार्यता के इस खेल में ,
उसकी चुप्पी ,
एक विद्रोह था। 
   


दुविधा

दौड़ते दौड़ते लगा कि 
सारी दुनिया थमी हुई है 
          शांत है ,
बस मैं ही दौड़े जा रहा हूँ 

हाँ ,अब रुका हूँ थोड़ा 
कि आराम से देखूँ जरा 
क्या है आस पास 

सब भागे जा रहे जाने कहाँ 
हैरान परेशान 
और मैं ही हूँ  
पिछड़ते जा रहा हूँ सबसे