फैल जाती है पेड़ो की बाँहे
अपने आसपास
किसी को सहारा मिल जाता है
तो कहीं छाँव
इस सहारे की एक कीमत
यह भी है
अपने जैसो को ये
पनपने ही नहीं देती।
फैल जाती है पेड़ो की बाँहे
अपने आसपास
किसी को सहारा मिल जाता है
तो कहीं छाँव
इस सहारे की एक कीमत
यह भी है
अपने जैसो को ये
पनपने ही नहीं देती।
कसैलापन आँवले का ,
नीम का ,
हँसी का,
जिंदगी का ,
स्वाद लिए रहती तो है अस्वाद का ,
जरुरी भी हो जाती है स्वास्थ्य के लिए,
मधुरता भी जहर हो जाती है
कभी कभी।
हमारे बीच की ये
वेन आरेख ,
मेरा पूरा हो सकता है ,
तुम्हारा भी पूरा हो सकता है,
हम तुम कुछ न कुछ साझा भी कर सकते है,
हम कुछ भी साझा नहीं कर सकते है,
जिन्दगी के गणित में,
संभावनाओं का अस्तित्व
हमेशा ही रहा है।
धरती ने मिटटी व् पत्थरो के अलावा
जो कुछ बचा था शेष ,
धीरे धीरे अपने में समेटते हुए
वर्षो बाद उन्हें कोयले में बदल दिया,
वही मनुष्यो ने पेड़ काटे ,मकान बनाये
जब जरुरत हुआ ,सुखी लकड़ियों को जला
आग तापी ,
फसल काटने के बाद ढूढ हुई ,
तनो व् जड़ो में आग लगा दिए ,
पल भर में घर फूकं दिए
अपना नहीं किसी और का ,
कभी ये आग से खेले
तो कभी आग इनके साथ खेल गया ,
हम लोगो ने बचपन में,
खेलने के लिए इन लकड़ी के कोयले से
धरती पर कई लाइनें खींच दी।
एक याद है
जो वर्तमान में
भविष्य के सपने देखती है ,
एक तुम हो
जो भविष्य में
वर्तमान को याद करना चाहोगे ,
एक मैं हूँ
जो भविष्य के सपने को
वर्तमान में एक याद की तरह गढ़ रहा हूँ।
कभी चेहरे की मुस्कराहट के पीछे
छिप जाते है हम ग़मों के साथ ,
और कभी
जीवन के उलझते क्षणों में
हसीं ही उबार लेती है हमें ,
जीवन में सुख दुःख तो आते रहते है ,
एक हमें ही ठहरना है
एक वजूद के साथ।
भितर ही डर जाते है
हम कहीं
पैर कहीं भी चल देते है
बस ठहरते नही है
उस जगह व उस पल में ,
मन बार बार पलायन
करता है ,
खुद से व खुद में ही ,
आँखे शून्य में चली जाती है
व विचार जड़वत।
छत आसमान से बात करने
की जगह,
पेड़ो की ऊंचाई तक जाकर
उनसे बात करने की जगह ,
मन को बादलों पर रख कर
साथ दूर तक विचरण करते रहना ,
व
पक्षियों को उड़ते और डाल पर
बैठते देखते रहना
सीमाएं सबकी अपनी है
उड़े चाहे जितनी
पर
आना यही है.
वक्त फूलों की सुगंध की तरह है
आसपास बस बिखर जाती है
आप चाहे तो उसे अंदर तक
समाहित करे ,
आनन्दित हो ,
स्वयं को उस पल में जोड़ दे
या
बस वहाँ से गुजर जाएं