apna sach

सोमवार, 11 जनवरी 2010

हकीकत

जिन्दगी में मैंने कुछ भी
बिगाड़ना नहीं चाहा
लेकिन जो बिगड़ गया
उसे संवारने की इच्छा भी नहीं हुई ,
ये मेरा भम्र है या
मेरी पैनी दृष्टि
मुझे बिगड़ा रूप ही
ज्यादा वास्तविक लगा .

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

सच का रूप हमेशा हमें असली स्वरुप में पसंद आता भी नहीं. हम सच को भी अक्सर अपनी जरूरतों के हिसाब से तोड़ने मरोड़ने की कोशिश करते रहते हैं.