apna sach

शनिवार, 30 जनवरी 2010

मंचन

कही तो कुछ शेष है ,
हलकी ,धीमी व् शिथिल मंद -मंद
दबी पड़ी कही
अन्दर तक,
कुछ नहीं फिर भी बहुत कुछ शेष है ,

मन में दबी पड़ी ,बचपन की कल्पनाए ,
युवाकाल की प्रतिशोध की भावनाए ,
वर्त्तमान से अजेय रहने की
इच्छाए शेष है ,

शेष है अभी पूर्णता की परिभाषा,

रिश्तो के इमारत में दरार ,
राहों की रहस्यमयी भटकाव ,
अभी हार के बीच में
जीत की संभावनाए शेष है ,

मस्तिष्क के शिराओ का कसाव ,
चेहरे की फीकी मुस्कान ,
शेष है अभी आखों (मौन ) की भाषा ,
जीवन का मंचन शेष है
शेष का अवशेष में परिवर्तन
पूर्ण नहीं तो
अधिअंशत: शेष है ।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

बहुत ही shandaar कविता. mansik kashmakash का बहुत ही सुन्दर varnan किया गया है