apna sach

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

अतीत

शांत था
और उस शांति में
कंकड़ फेकना
हलचल पैदा कर
उभार दिया वृत्त दर वृत्त
उभरती व ख़त्म होती
कल्पनाओ का घेरा
अंतत: धीरे धीरे ख़त्म
पर आज भी
अंतर्मन के तलहटी में
काई से ढके
सुरक्षित है वो फेके गए पत्थर
जो आंदोलित कर गए थे
मेरे अंतर्मन को
कुछ क्षणों व दिनों के लिए

1 टिप्पणी:

sonal ने कहा…

बहुत से अर्थ समेटे सुन्दर रचना,शायद पहला प्यार भी तो ऐसा ही होता है