शुक्रवार, 9 जुलाई 2010
परिचय
तुम मेरा परिचय जानना चाहते हो
क्या कहूँ कि मै एक पत्ता हूँ
कभी हरा भरा और
कभी सूख कर गिरता हुआ ,
कभी लहराता हुआ और
कभी मूल से दूर जाता हुआ
क्या कहूँ कि मै एक जड़ हूँ
गहराइयो की ओर अग्रसर
मिटटी से मिला हुआ
कभी धरातल पकडे
और कभी उखड़ा हुआ
सार तत्व की खोज में लीन
एक ऊचाई को पकड़ा हुआ
क्या कहूँ कि मै एक तना हूँ
कभी झुककर नतमस्तक
कभी टूटकर गिरता हुआ
एक ऊचाई पाकर भी
बाधाओ में हिलाता हुआ
कभी बोझ लिए अरमानो का
कभी तत्वहीन लगता हुआ
मजबूत आलम्ब बन कर भी
शाखाओ में बटा हुआ
क्या कहूँ कि मै एक फूल हूँ
कभी खिलता हुआ और
कभी मुरझाता हुआ
कभी माध्यम बना नवीन जीवन का
कभी जीता जीवन खोता हुआ
कभी सुगन्धित व आकर्षित
कभी दिखावा करता हुआ
अल्प जीवन पाकर भी
जीवन को अर्थ देता हुआ
कभी बिखरा मै बहारो से
कभी काटों में खिलता हुआ
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1 टिप्पणी:
वाह्…………………।बेहद उम्दा अभिव्यक्ति।
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