राजनीति जब तुम्हारे बातो
में होती है तो
श्रेष्ठ रहती है
राजनीति जब तुम्हारे कर्मो
में जाती है तो
भ्रष्ट हो जाती है
बातो के पुलिंदे में जब तब
करवट बदलते अर्थ
कभी बैशाखी बन जाते है
तो कभी अस्त्र
तुम जब दल बदलते हो
तो राजनीति नए अध्याय
में जाती है
तुम नहीं बदलते
तुम्हारी सोच नहीं बदलती
बस बदलते है
तुम्हारे अस्त्र व तुम्हारे ढाल
तुम सरकार बनाते हो
तुम सरकार चलाते हो
राजनीति ko हांक कर
संसद में बिठाते हो
तुम वहा उठते बैठते
मजाक करते
कभी हल्ला मचाते
कभी अभद्र होते हो
और हम कही उसका
भुगतान करते तो
राजनीति वही शर्मसार हो
जाती है
1 टिप्पणी:
वाह वाह ! कमाल की सोच है , अग्रजों की बेवकूफियों का भुगतान तो हमें करना ही पड़ेगा चाहे घर हो देश !
पहली बार आपको पढ़ा , निशाँ छोड़ने में कामयाब हो ! शुभकामनायें
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