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बुधवार, 24 मार्च 2010

थोड़े दिन की उसकी अवधि

थोड़े दिन की उसकी अवधि
प्यार भरे ,कुछ गम भरे
कुछ ऐसा भी जो ,कम ही पड़े
कुछ उसने जिया ,कुछ इसने जिया
मिलती ही रही ,सिमटी ही रही
थोड़े दिन की उसकी अवधि

कुछ स्वप्न दिखे ,कुछ व्यंग्य लगे
कुछ रात रहे ,कुछ शांत रहे
एक उम्र गयी ,जो व्यर्थ रही
एक शाम घिरी जो शुष्क रही
शुष्क रही ,आंसू की नमी
जो व्यर्थ बही ,एक अर्थ लिए
थोड़े दिन की उसकी अवधि

वह सब भूला जो सुखद रहा
वह याद रहे जो कष्ट लगे
वही ख्वाब बने जो हाथ लगे
वो स्वप्न रहे जो दिल से मिले
बस वही दिखा जो नीरस थे
आडम्बर से थे सजे धजे
थोड़े दिन की उसकी अवधि

अब क्या होगा जो नहीं हुआ
जो होगा उसकी चाह नहीं
ये चाह रही ,बचपन की गली
वो शाम रही जो रिमझिम थी कभी
थोड़े दिन की उसकी अवधि


तुच्छ है अब तूफान व सागर भी
नभ जो अन्दर तक है फैला
बहुत कुछ है सिमटा
यहाँ से वहां तक है फैला
इस कोने से उस कोने तक की आशाएं
गीत गुनगुनाते हुए चुप है
थोड़े दिन की उसकी अवधि ।

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