जिन्दगी भर ,एक आस में
काफी कुछ सह गए वो
कब वक्त बदलेगा
यह प्रश्न रहता
अब वक्त बदलेगा
यह दिलासा होती
उम्र के छोटे छोटे टुकड़ो में
संतुष्ट होते गए वो
दहलीज पार करते तो
हर कदम पर हमसाये होते
घर के अन्दर
उदास जिंदगी को खूटी पर टांग रहे होते
पसीने को तो हवा सुखा जाती
और प्यास को कुए का पानी
पर दिन भर घुमड़ते मन को
शाम में दिल से बहलाते रहे वो .
2 टिप्पणियां:
कमाल का ओबजर्वेशन है कविता, जो सिर्फ बाहर ही नहीं वरन भीतर गहरे तक झाँकने में समर्थ है.
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
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