गुम्बद की तरह ऊची एक आवाज
दूर तक गूंज गयी
सभी ने सुना
धीरे धीरे आवाजधीमे धीमे ही सही
गीले उपले में लगी आग की तरह
धुएं की शक्ल में
दूर तक छा गयी
धुंध में कुछ स्पष्ट दिखना न था
फिर भी लोग उस आवाज के
विषय में बात करते
अपनी आवाज को ही उस आवाज
का नाम देते
कुछ को अपने कानो पर विश्वास
कुछ को अपनी जबान पर
आश्चर्य सब अलग होते
वो आवाज क्या कह गयी
आज भी एक रहस्य है
पर वह आवाज गूंजी थी
ये सभी कहतें हैं
अब भी लोग उन आवाजों को
गौर से सुनते है
जो ऊची होती है
जो विस्तृत फैलती है
और शायद भ्रमित होते है कि
उन्होंने उस आवाज को सुन लिया
जो कभी गूंजा था और
आज भी धुंध में है
वे इसे धर्म की संज्ञा देते है
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