apna sach

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

यादें

रुकती हुई
एक संवेदना
एक भाव
अब गिरती ,तब गिरती
डाल से अलग होती हुयी

एक पत्ती की तरह
सुने वियावन जंगल में
आखिर बिछ गयी धरती पर
धूप होगी
हवा बहेगी
वह आवाज करेगी
तब तक रहेगी संगीतमय
जब तक वह भीग न जाये
अंतत:
खामोश ,किन्ही तहों में दबी
आखिरकार संवेदनाशून्य हो ही जायेगी


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