apna sach

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

परिवर्तन

रोज की तरह
जैसे खाना ,पहनना
रोज की तरह
सोना ,जागना
रोज की तरह
दिन गुजारना ,
इन्ही रोज में
सिमटती उम्र
बढ़ते अनुभव ,
झड़ते बाल ,मुरझते जिस्म ,
रोज में बदल जाता है
सबका विचार ,
कल, आज में अंतर ,
चौबीस घंटे का अंतर ,
वो भी व्यतीत होते है
रोज की तरह

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