apna sach

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

दांपत्य

याद है वे बातें जो
पगडंडी से होती हुयी
सड़क
सड़क से होती हुयी
शहर
शहर से होती हुयी
ताजमहल तक पहुची थी
ताजमहल अच्छा था
अत: बातें भी अच्छी रही
सुना था चांदनी में ताजमहल
खुबसूरत लगता है
हम लोगो की बाते भी
इंतजार में रही
चांदनी की
चांदनी झिलमिल ,स्वप्नलोक का
अहसास करती जब
बिझी धरती पर
हमारे कदमो से लेकर दूर अम्बर तक
तब हमारी बाते भी ठहर गयी थी
मुस्कराती हुयी खामोश थी
खामोश थी तब भी बातें
जब हम लौट रहे थे
अपने घर के चूल्हे के पास
आग के किनारे
तुष्टि के समीप
उसके बाद
बातें हमारे इर्द गिर्द ही रही
चूल्हे के पास से होती हुयी
द्वार पर आये हुए
हर शख्स से बात करती हुयी

कोई टिप्पणी नहीं: