apna sach

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

सृष्टि का रहस्य

दोनों चुप थे ,उनकी परछाइया चुप थी ,
शांत था पूरा वातावरण ,
बस एक पानी की बूंद थी
जो टिप -टिप करके वातावरण को
एक लय दे रही थी ,
दोनों को लग रहा था
उनकी सारी शक्ति निचुड़ कर
इन बूंदों की शक्ल में ,
धरती पर पड़े पत्थर को
व्यर्थ ही भिगो रही है ,

एक परछाई उठी ,हटा दिया उस पत्थर को ,
अब बूंदे धरती को भिगो रही थी ,
वह परछाई जिसने छू लिया था उन बूंदों को ,
जाग उठी थी उसकी प्यास ,
लेकिन क्या इन बूंदों से ही
उसकी प्यास मिट सकती है ?

एक दूसरे से अनजान वे दोनों
जिनमे से एक ने तृषा को जान लिया था ,
दूसरी परछाई
जो एकटक निहार रहा था उन बूंदों को
जो अब गिरने वाली थी ,
उसे लग रहा था वह डूब ही जायेगा
अगर यह गिरी तो ,
तभी पहली परछाई ने रोक लिया उस बूंद को ,
जिह्वा पर उस बूंद को फैल जाने दिया ,
तृषा को कुछ क्षण के लिए परे धकेल दिया उसने ,
अब परछाइया करीब थी ,
एक तृषा से ऊबर चुकी थी और दूसरा डूबने से बच चुका था
अब हर बूंद के साथ ,पास पास हो रहे थे
लेकिन आखिर कब तक ,

क्या आखिरी बूंद तक संभव है यह सम्बन्ध
टूट गया इन बूंदों की लड़ियों की तरह ,
असंभव जान पड़ता है यह टूटन ,
हर बूंद की जरूरत, एक को होगी अपनी तृषा के लिए ,
औरयही जरुरत दूसरे की जिंदगी है ,
यही जरुरत पास लायी है उनको ,
लेकिन क्या हर बूंद में तृषा जगाने व किसी को डूबाने की
वास्तविक क्षमता है
या यह केवल भ्रम है ,
यह भ्रम भी क्या एक
रहस्य है सृष्टी का ।




उन बूंदों को

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