apna sach

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

नया कुछ नहीं

सागर में तूफान ,
लहरों में उफान ,
एक सीमा तक ,
फिर सब शांत ।
समय था गुजर गया ,
कही कुछ भी नहीं हुआ।

सागर के उस पार ,
फिर धूप खिली ,निखरी
रात हुआ ,चाँद निकला
समय इसी तरह गुजरता रहा ,
सब कुछ होता रहा
फिर भी अलग कुछ भी नहीं हुआ ।

अतल गहराई भी छलका ,
अनंत ऊचाई भी पसरा ,
खुली ताबूत बंद हुई ,
फिर भी नया कुछ भी नहीं हुआ ।

क्योकि
मालूम है ,ये होता है
आशा है ,यही होगा
कल्पना है ,ये हो सकता है
तो नया क्या होगा ,
कुछ नहीं ।

कोई टिप्पणी नहीं: