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सोमवार, 1 फ़रवरी 2010
सुबह
शाम कितनी भी सुहानी हो
वो रात होने का घोतकहै ।
भोर कितना भी धुंधला हो
वो दिन होने की निशानी है ।
शाम कितनी भी चहल पहल हो
वो तन्हाई के करीब है ।
भोर कितना भी स्वच्छ हो
वो दुनियादारी की पहल है ।
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