apna sach

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

अनुभव

हमारे अनुभव ,
हर कदम पर
हमको ही चिढाते ,
जितना सोचते
उससे ज्यादा ही मिल जाते ,
जैसे कभी
चोट को सहलाते हुए
ये सोचते कि
एक दिन तो ठीक हो जायेगा यह ,
दूसरे ही पल
उससे कही बड़ी चोट लग जाती ,
और हम वही
थोड़े और अनुभवी हो जाते ।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

यह बात कितनी सच है. हम सब इस सच को जानते भी है लेकिन उस सच को एक कविता के रूप में पढ़ कर उस सच का अनुभव और ज्यादा होता है.