apna sach

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

विरोध -३

कब तक शांत रहोगे ,
तुम्हारे विरोध का
ये मूक तरीका व
तुम्हारे बढ़ते जख्म ,
उन्हें बनाता जा रहा है
बहरा व अँधा ,
तुम दोनों ही पहुचते
जा रहे हो ,
असंवेदनशीलता के पराकाष्ठा पर ,
संघर्ष से परे ।

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