भितर ही डर जाते है
हम कहीं
पैर कहीं भी चल देते है
बस ठहरते नही है
उस जगह व उस पल में ,
मन बार बार पलायन
करता है ,
खुद से व खुद में ही ,
आँखे शून्य में चली जाती है
व विचार जड़वत।
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