apna sach

सोमवार, 1 सितंबर 2025

डर

   भितर ही डर जाते  है 

             हम कहीं 

पैर  कहीं भी चल देते है 

             बस ठहरते नही है 

उस जगह व उस पल में ,


मन बार बार पलायन 

             करता है ,

खुद से व खुद में ही ,

आँखे शून्य में चली जाती है 

व विचार जड़वत। 

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